रासायनिक उर्वरकों के निरन्तर प्रयोग से भूमि की दशा एवं उर्वरा शक्ति में ह्नास होने के कारण कार्बनिक खादों का प्रयोग करना अब नितान्त आवश्यक है। कार्बनिक खादों के प्रयोग से भूमि की भौतिक दशा, जल धारण क्षमता एवं वायु संचरण में पर्याप्त सुधार होता है, जिससे मृदा का उर्वरा स्तर अधिक समय तक सुरक्षित रहता है। आधुनिक युग में कृषि का यंत्रीकरण होने के कारण ग्रामीण अंचलों में भी गोबर की खाद का अभाव है। अतः इसके विकल्प के रूप में मैली जोकि चीनी मिलों से सस्ते दर पर उपलब्ध हो जाती है तथा गोबर की खाद की तुलना में अधिक पोषक तत्वों से युक्त होती है तथा भूमि में जीवांश कार्बन में वृद्धि होती है। मैली का प्रयोग खेत में सीधे नहीं करना चाहिए क्योंकि यह अम्लीय होती है तथा इसमें पोषक तत्व उपलब्ध अवस्था में नहीं होते, साथ ही दीमक के प्रकोप की भी संभावना अधिक रहती है। अतः इसे खेत में प्रयोग करने से पूर्व वैज्ञानिक विधियों द्वारा विघटित कर लेना चाहिए। मैली से उपयुक्त खाद बनाने हेतु निम्न दो विधियां विकसित की गई है-
1. जीवाणु कल्चर के प्रयोग द्वारा।
2. वर्मी कल्चर विधि।
जीवाणु कल्चर के प्रयोग द्वारा Bacterial Culture Method
इसके अन्तर्गत दो विधियाँ आती है-
गड्ढा विधि Pit Method
1. 1.0 मीटर गहरा ग 1.5 से 2 मीटर चौड़ा ग 10 से 15 मीटर लम्बा आवश्यकतानुसार गड्ढा बनाना चाहिए।
2. इस गड्ढे में कार्बनिक पदार्थों जैसे - गन्ने की सूखी पत्तियां, बगास, कूड़ा-करकट, घरेलू कचरा इत्यादि की 15 सेमी. मोटी तह बिछा देना चाहिए।
3. 500 लीटर पानी 100 किग्रा. गोबर तथा 1.0 किग्रा. जीवाणु कल्चर का घोल प्रति टन की दर से छिड़क देना चाहिए।
4. इस तह के ऊपर मैली की 15 सेमी. मोटी तह बिछाकर 80 किग्रा. यूरिया ,10.00 किग्रा. सिंगल सुपरफास्फेट प्रति टन की दर डाल देना चाहिए।
5. तीन से चार परतों के पश्चात् गड्ढा भर जाने पर सबसे ऊपर गोबर, मिट्टी व मैली के मिश्रण से गड्ढे को ढक देना चाहिए। गड्ढे की लम्बाई में वायु संचरण हेतु एक तरफ से एक फुट खाली स्थान छोड़ देना चाहिए।
6. उक्त पदार्थों की प्रथम व द्वितीय पलटाई 15 दिन के अन्तराल पर तथा तीसरी पलटाई 1 माह के अन्तराल पर कर देना चाहिए। इस प्रकार लगभग 90 - 120 दिन में उपयुक्त कम्पोस्ट तैयार हो जाती है।
ढेर विधि Pile Method
इस विधि के अन्तर्गत उपरोक्तानुसार विभिन्न कार्बनिक पदार्थों की तीन से चार तहे लगाकर 1.0 मीटर ऊँचा, 1.5 मीटर चौड़ा तथा आवश्यकतानुसार 10 से 15 मीटर लम्बा ढेर लगाना चाहिए। उक्त ढेर पर समुचित नमी बनाये रखने हेतु पानी का छिड़काव तथा उपरोक्तानुसार समय-समय पर ढेर की पलटाई करना चाहिए।
वर्मी कल्चर विधि Vermiculture Method
केचुओं द्वारा मैली का विघटन दो चरणों में कराया जाता है -
प्रथम चरण First Stage of Vermiculture Method of Biofertilizer Production from Press mud
इस चरण के अन्तर्गत जीवाणु कल्चर विधि की भाँति गन्ने की सूखी पत्तियों, बगास, कूड़ा-करकट, घरेलू कचरा व प्रेसमड इत्यादि को गड्ढों में सड़ने दिया जाता है। उक्त कार्बनिक पदार्थों का लगभग 50 प्रतिशत विघटन होने के पश्चात् उक्त पदार्थ को बाहर निकालकर द्वितीय चरण में केचुए द्वारा विघटन हेतु प्रयोग करना चाहिए।
द्वितीय चरण Second Stage of Vermiculture Method of Biofertilizer Production from Press mud
द्वितीय चरण में उक्त अधसड़े कार्बनिक पदार्थ का विघटन 2.5 मीटर चौड़ा ग 10 से 15 मीटर लम्बे आवश्यकतानुसार टिन शेड के नीचे कराया जाता है। शेड के नीचे 25 सेमी. ऊँचा ईट का पक्का प्लेटफार्म बनाना चाहिए जिससे केंचुए भूमि में प्रवेश न कर सके। प्रथम चरण से प्राप्त अर्ध विघटित पदार्थ का 0.50 मीटर ऊँचा, 1.0 मीटर चौड़ा, 10 से 15 मीटर लम्बा ढेर आवश्यकतानुसार लगाना चाहिए। उक्त ढेर पर 1.0 किग्रा. केंचुआ प्रति टन के दर से छोड़ देना चाहिए। पानी के छिड़काव द्वारा ढेर में नमी 60 प्रतिशत तक तथा तापक्रम 30 से.ग्रे. तक बनाए रखना चाहिए। 40-45 दिन पश्चात केंचुए उक्त कार्बनिक पदार्थो को पूर्ण रूप से विघटित कर देते हैं। इस प्रकार वर्मीकम्पोस्ट तैयार हो जाता है। वर्मी कम्पोस्ट एकत्र करने के लिए ढेर की सिंचाई तीन चार दिन के लिए रोक दी जाती है। जब ऊपर की नमी कम हो जाए तो वर्मी कम्पोस्ट को ऊपर से हटा लिया जाता है तथा उसमें उपस्थित केंचुओं को 2 मिमी. की छन्नी से छानकर पुनः प्रयोग हेतु एकत्र कर लिया जाता है।
वर्मी कम्पोस्ट की पहचान Identification of Vermicompost
1. कम्पोस्ट का रंग गहरा काला-भूरा हो जाता है।
2. मिट्टी जैसी सोंधी गंध आती है।
3. कम्पोस्ट की संरचना महीन दानेदार होती है।
4. प्रायः पानी में अघुलनशील होता है।
5. मक्खियों को आकर्षित नहीं करता है।
वर्मी कम्पोस्ट का संगठन Composition of Vermicompost
नत्रजन - 0.6 से 1.60 प्रतिशत
फास्फोरस - 1.34 से 2.20 प्रतिशत
पोटाश - 0.4 से 0.67 प्रतिशत
कैल्शियम आक्साइड - 0.44 प्रतिशत
मैगनीशियम आक्साइड - 0.15 प्रतिशत
जैविक/कार्बनिक उर्वरक के प्रयोग से लाभ Advantages of biofertilizers Application
सिंचाई हेतु प्रयुक्त पानी में 2.5ः तक बचत की जा सकती है।
मृदा की उर्वरता, जल धारण क्षमता तथा वायु संचरण में वृद्धि होती है।
विभिन्न पोषक तत्व उपलब्ध अवस्था में आ जाते हैं, जिससे पौधे इनकों आसानी से ग्रहण कर लेते हैं।
रासायनिक खादों/नाशीकीटों के प्रयोग से होने वाले वायुमण्डलीय प्रदूषण में कमी आती है।
उपज में वृद्धि होती है।
कृषि आधारित कार्बनिक पदार्थों का पुनर्चक्रण हो जाता है।
संदर्भ- कृषि ज्ञान मंजुषा, कृषि विभाग उत्तर प्रदेश सरकार