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बकरी पालन : एक लाभकारी व्यवसाय Goetry- A Profitable Enterprise


सीमान्त एवं लघु पशुपालकों के लिए बकरी पालन एक सफल व्यवसाय है। इसको आसानी से अपनाया जा सकता है, व्यवसाय में लागत कम है तथा कम स्थान की आवश्यकता होती है। साथ ही उन्नत नस्ल के बकरें/बकरियों की बिक्री कर आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता हैं। बकरी का दूध स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से उत्तम आहार है। इसमें अत्यधिक मात्रा में विटामिन ए, डी, ई पाया जाता है। जिसमें मुख्य रूप से बरवरी, बीटल एवं जमुनापारी बकरियां पाली जा रही है।

बकरी पालन से सम्बन्धित कुछ प्रमुख बिन्दु Important Points of consideration in goetry


  • बकरी पालन हेतु नस्ल का चयन स्थानीय मौसम को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए।
  • बकरियों की बरबरी प्रजाति, मांस उत्पादन हेतु उपयुक्त होती है।
  • बरबरी नस्ल की बकरियों को विशेषतः बाँधकर (Stall Feeding) खिलाकर पालन किया जा सकता है।
  • प्रजनन कार्य हेतु बकरा चयन करते समय उसकी नस्ल की बच्चा देने की क्षमता और दूध देने की क्षमता को विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए।
  • 100 बकरियों के बाड़ा बनाने हेतु 120 वर्गफुट निर्मित क्षेत्र एवं बाहरी जीवों से बचाव हेतु खुले क्षेत्र की बाउन्डंी आवश्यक है।
  • बकरी बाड़ा में निर्मित क्षेत्र की दीवार 1 मीटर ऊँची हो तथा उसके ऊपर जाली लगवानी चाहिए। 
  • शेड की लम्बी दीवार पूरब-पश्चिम में रखे तो उत्तम होगा।
  • बकरियों का प्रजनन गर्मी में आने के 12 घण्टे बाद करवाना उचित रहता है।
  • बकरियों में इन-बीडिंग को हमेशा बचाना चाहिए। इन-व्रीडिंग के कारण बच्चों में विकलांगता आ सकती है तथा उनकी वृद्धि दर में भी कमी आ सकती है।
  • जिस बकरें से बकरी का प्रजनन कराया गया है उसी से उसकी संतति का प्रजनन कदापि न कराये।
  • एक प्रौढ़ बकरी को उसके वजन का 3-5ः भूसा देना चाहिए। दलहनी फसलों को भूसा उत्तम होता है।
  • सामान्य अवस्था में एक प्रौढ़ बकरी को 100-200 ग्राम दाना देना आवश्यक होता है तथा गाभिन/दुधारू बकरी को 300-500 ग्राम दाना प्रतिदिन दिया जाना चाहिए। सम्भव हो तो दाना घर पर ही बनायें जिसमें निम्न अवयव हों-

    • दला हुआ अनाज - 60 प्रतिशत
    • चोकर - 10-15 प्रतिशत
    • खली - 10-15 प्रतिशत
    • मिनिरल मिक्चर - 2 प्रतिशत
    • नमक - 1 प्रतिशत
  • बकरियों को उनके वजन के अनुसार 500 ग्राम- 1 किग्रा0 हरा चारा देना चाहिए।
  • बकरियों में संक्रामक बीमारी contagious diseases से बचाव हेतु समय-समय पर टीकाकरण करवाते रहना चाहिए। जैसे- पी0पी0आर0., इन्टेरोटाक्सिनिया, खुरपका, मुंहपका, गलाघोटू, चेचक आदि।
  • कम से कम 3 माह के उपरान्त ही बकरियों में टीकाकरण करवाना चाहिए।
  • बकरियों में पेट के कीड़े की दवा वर्ष में दो बार प्रति छः माह पर पिलाना चाहिए तथा पशुचिकित्साधिकारी की उचित सलाह के बाद ही देना चाहिए।
  • बकरियों को वाह्य परजीवी से सुरक्षा हेतु पशुचिकित्साधिकारी से सलाह अनुसार दवा घोलकर स्नान कराना कराना चाहिए।
  • बकरी को व्याने के पश्चात् बच्चे की नाल 2 इंच छोड़कर/धागे से बांधकर उसके नीचे से नई ब्लेड से काटकर उसपर टिंचर आयोडीन लगाना चाहिए।
  • बकरी के बच्चे को पैदा होने के आधे घण्टे के अन्दर माँ का दूध पिलाना चाहिए।
  • बकरी के बच्चे को 6-12 माह की आयु पर बेचना लाभकारी होता है। विशेषतः त्योहारों जैसे- ईद, बकरीद, होली आदि।
  • बकरी का मूल्य उनके जिंदा वजन के अनुसार ही निर्धारित करना चाहिए। संदर्भ कृषि ज्ञान मंजुषा कृषि विभाग उत्तर प्रदेश सरकार


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