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एकीकृतनाशी जीव प्रबन्धन Integrated Pest Management (IPM)

 

एकीकृतनाशी जीव प्रबन्धन Integrated Pest Management (IPM)

प्रदेश में कृषि के प्रति वांछित आकर्षण पैदा करने एवं उसको कम खर्चीला और अधिक लाभकारी बनाने के लिए जिन उपायो पर गौर किया जा रहा है, उनमें प्रमाणित एवं उपचारित बीजों (certified and treated seeds) की उपलब्धि, उर्वरकों (fertilizers) का सही ढंग से उपयोग, अच्छा जल प्रबन्ध एवं इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट (Integrated Pest Management) मुख्य हैं। प्रदेश में हर वर्ष अनेक कीट, रोगों, चूहों एवं खरपतवारों से फसलो की उपज पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन समस्याओं में धान का बाल काटने वाला सैनिक कीट, धान का गन्धी कीट, चने एवं अरहर की फली बेधक, मूँगफली का सफेद गिडार, सरसों का माहूं, आम का फुदका, आलू का पछेती झुलसा, मटर का बुकनी रोग, टमाटर एवं भिण्डी का मौजेक, अरहर का बंझा रोग और गेहूँ का मामा आदि कुछ प्रमुख समस्याऐं हैं। अभी तक इन समस्याओं से निपटने के लिए आमतौर पर केवल रसायनों का ही सहारा लिया जाता रहा है। यह रसायन खर्चीले होने के साथ-साथ वातावरण को दूषित (pollution) करते हैं एवं कई प्रकार की दुर्घटनाओं का भय भी बना रहता है। इन रसायनो के अवशेष अक्सर फूलों एव सब्जियों आदि मे रह जाते हैं तथा उपभोक्ता के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव छोड़ सकते हैं। रसायनों के निरन्तर उपयेाग से कई कीटों में उनके विरूद्ध अवरोध पैदा हो जाता है और बहुत से कम महत्वपूर्ण कीट बड़ी समस्यायें आ जाती हैं। साथ ही साथ खेत में या वातावरण मे उपस्थित मित्र कीट समाप्त हो जाते हैं और पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाता है। समस्याओं के प्रभावी निदान एवं उपर्युक्त खतरों से बचने लिए अब जिस पद्धति पर जोर दिया जा रहा है उसको इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेन्ट या एकीकृत नाशीजीव प्रबन्ध कहा जाता है। इस पद्धति में कीटों रोगों और खरपतवारों आदि के उन्मूलन या नियन्त्रण के बजाय उनके प्रबन्ध की बात की जाती है। वास्तव में हमारा ध्येय किसी जीव को हमेशा के लिए नष्ट करना नहीं है बल्कि ऐसे उपाय करने से है जिससे उनकी संख्या/घनत्व सीमित रहे और उनसे आर्थिक क्षति न पहुँच सके। इस पद्धति की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं:-

1. गर्मी में गहरी जुताई करके फसलों एवं खरपतवारों के अवशेष को नष्ट कर देना जिससे कीट/रोग के अवशेष उन्हीं के साथ नष्ट हो जायें और उनकी वृद्धि पर नियन्त्रण पाया जा सके।

2. समुचित फसल चक्र अपनाया जाना।

3. फसल के प्रतिरोधी प्रजातियों के मानक बीजों की बुवाई करना।

4. हमेशा बीज को शोधित करके बोना।

5. बुवाई समय से व एक साथ की जाय, पौध-पौध की वांछित दूरी बनाये रखी जाये।

6. उर्वरकों का संतुलित उपयोग किया जाय।

7. समुचित जल प्रबन्ध अपनाया जाय।

8. निराई-गुड़ाई करके समय से खरपतवारों को नष्ट करते रहें।

9. सर्वेक्षण द्वारा नाशीजीव एवं उनके प्राकृतिक शत्रुओं पर बराबर निगाह रखी जाय और यदि नाशीजीव प्राकृतिक शत्रु से बराबर या अधिक मात्रा में हों तभी रासायनिक उपचार अपनाया जाय।

10. नाशीजीव के अण्ड समूह एवं इल्लियों को प्रारम्भिक अवस्था में नष्ट करते रहें।

11. प्रकाश/फेरोमैन टैंप (light /pheromone trap) का उपयेाग करके नाशीजीव के प्रौढ़ को नष्ट किया जाय।

12. नाशीजीव के प्राकृतिक शत्रुओं की संख्या में वृद्धि करने के लिए उन्हें बाहर से लाकर खेतों में छोड़ा जाय। 

इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेन्ट में पहली आवश्यकता यह है कि फसलों का बराबर सर्वेक्षण किया जाता रहे, ताकि किसानों एवं कार्यकर्ताओं को विभिन्न कीटों और रोगों आदि की स्थिति के बारे में ज्ञान होता रहे। यह भी आवश्यक है कि कार्यकर्ताओं और किसानों के प्रशिक्षण (farmers training) का उचित प्रबन्ध किया जाये, ताकि वह समस्याओं को पहचानने और उससे सम्बन्धित उस बिन्दु अथवा अवस्था को जानने की क्षमता ला सकें, जिन पर रसायनों का प्रयोग या दूसरे कार्य करने आवश्यक हो जाते हैं। इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेन्ट में जैविक एजेण्टों (bioagents) का बहुत महत्व है, जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के परजीवी/ परभक्षी कीट फफूंदी, बैक्टीरिया, विषाणु और अन्य जीव जन्तु सम्मिलित हैं, जिनके द्वारा फसलों के हानिकारक कीटों एवं रोगों प्रबन्धन(disease management) किया जाता है। सामान्य पर्यावरण में यह सारे जीव अपना कार्य करते रहते हैं और समस्याओं को काफी हद तक सीमा में रखते हैं परन्तु आज की सघन खेती (intensive farming) में इनकी सामान्य कार्यशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिसमंे रसायनो का अन्धाधुन्ध प्रयोग सबसे बड़ी बाधा है। प्रदेश में कई कीट एवं अन्य समस्याओं का प्रभावी जैविक नियन्त्रण किया गया है जिसमे गन्ने का पाइरिला कीट (sugarcane pyrilla), चने का फली बेधक (gram pod borer) एवं जलकुम्भी (water hyacinth) का नियन्त्रण शामिल है। चने के फली बेधक कीट के लिए न्यूक्ल्यिर पाली पॉलीहेड्रोसिस वाइरस-nuclear polyhedrosis virus (N.P.V.) 250 लीटर की दर से बहुत सफल पाया गया है। जलकुम्भी जो प्रदेश के जलाशयों की बड़ी समस्या है, दो प्रजातियों के कीटों (weevils) द्वारा प्रभावी ढंग से नियंत्रण में आ सकती है। जैविक नियन्त्रण को बढ़ाने के लिए ऐसी प्रयोगशालाओ की स्थापना की आवश्यकता है, जहाँ परजीवियों/परभक्षियों आदि को पालकर बढ़ाया जा सके और उनका सफल परीक्षण किया जा सके। डायपेल-8 एल (Dipel 8L) नामक विषाणु युक्त जैविक रसायन का उपयोग लिपिडोप्टेरस कीट के नियन्त्रण के लिए किया जा रहा है।संदर्भ-कृषि ज्ञान मंजूषा, कृषि विभाग उत्तर प्रदेश 


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