कृषि रक्षा रसायनों के प्रयोग से जहाँ कीटों/रोगों एवं खरपतवारों में इन रसायनों के प्रति सहनशक्ति उत्पन्न हो रही है और कीटों के प्राकृतिक शत्रु (मित्र कीट) कुप्रभावित हो रहे है, वहीं कीटनाशकों के अवशेष खाद्य पदार्थों, मिट्टी, जल एवं वायु की गुणवत्ता को खराब कर प्रकृति एवं मानव स्वास्थ्य को हानि पहुंचा रहे है। कीटनाशी रसायनों के हानिकारक प्रभावों से बचने के लिए जैविक कीटनाशी/जैविक एजेण्ट का प्रयोग नितान्त आवश्यक है।
जैविक कीटनाशी से लाभ Benefits of Bioinsecticides
जीवों एवं वनस्पतियों पर आधारित उत्पाद होने के कारण जैविक कीटनाशी मृदा में अपघटित हो जाते हैं तथा उनका कोई भी अंश अवशेष नहीं रहता। जैविक कीटनाशी केवल लक्षित कीटों/रोगों को प्रभावित करते हैं, मित्र कीटों पर इनका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से कीटों/रोगों में सहनशीलता अथवा प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न नहीं होती जिससे जैविक कीटनाशक हमेशा प्रासंगिक बने रहते हैं। जैविक कीटनाशकों के प्रयोग के तुरन्त बाद फलों, सब्जियों आदि को प्रयोग में लाया जा सकता है, जबकि कीटनाशी रसायनों के प्रयोग के बाद फलों, सब्जियों आदि का प्रयोग तुरन्त नहीं किया जा सकता है। जैविक कीटनाशकों के सुरक्षित होने के कारण इनके प्रयोग से उत्पादित फल, सब्जियाँ, खाद्यान्न आदि अच्छे मूल्यों पर बिक जाते हैं, जिससे कृषकों का आर्थिक सुदृढ़ीकरण भी हो जाता है।
जैविक कीटनाशी-ट्राइकोडर्मा विरिडी/ट्राइकोडर्मा हारजिएनम Trichoderma
ट्राइकोडर्मा फफूंद पर आधारित घुलनशील जैविक फफूंदनाशक है। ट्राइकोडर्मा विरिडी 1 प्रतिशत डब्लू0पी0, 1.5 प्रतिशत डब्लू0पी0, 5 प्रतिशत डब्लू0पी0 तथा ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 0.5 प्रतिशत डब्लू0एस0, 1 प्रतिशत डब्लू0पी0, 2 प्रतिशत डब्लू0पी0 के फार्मुलेशन में उपलब्ध है। ट्राइकोडर्मा विभिन्न प्रकार की फसलों फलों एवं सब्जियों में जड़ सड़न, तना सड़न, डैम्पिंग आफ, उकठा, झुलसा आदि फफूंदजनित रोगों में लाभप्रद पाया गया है। धान, गेहूँ, दलहनी फसलों, गन्ना, कपास, सब्जियों, फलों आदि के फफूंद जनित रोगों में यह प्रभावी रोकथाम करता है। ट्राइकोडर्मा के कवक तंतु हानिकारक फफूंदी के कवक तंतुओं को लपेट कर या सीधे अन्दर घुसकर उसका रस चूस लेते हैं। इसके अतिरिक्त भोजन स्पर्धा के द्वारा कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ का स्राव करते है, जो सुरक्षा दीवार बनाकर हानिकारक फफूंदी से सुरक्षा देते है। ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से बीजों का अंकुरण अच्छा होता है तथा फसलें फफूंदजनित रोगों से मुक्त रहती है। नर्सरी में ट्राइकोडर्मा के प्रयोग करने पर जमाव एवं वृद्धि अच्छी होती है। ट्राइकोडर्मा की सेल्फ लाइफ एक वर्ष होती है।
ट्राइकोडर्मा के प्रयोग की विधि :
1. बीज शोधन हेतु 4-5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा0 बीज की दर से प्रयोग कर बुआई करना चाहिए। कन्द एवं नर्सरी पौध उपचार हेतु 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर उसमें कन्द एवं नर्सरी के पौधों की जड़ को शोधित कर बुवाई/रोपाई करना चाहिए। भूमिशोधन हेतु 2.5 किग्रा0 प्रति हे0 ट्राइकोडर्मा को 65-70 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई से पूर्व आखिरी जुताई के समय भूमि में मिला देना चाहिए।
2. बहुवर्षीय पेड़ों के जड़ के चारों तरफ 1-2 फीट चौड़ा एवं 2-3 फीट गहरा गड्ढा पौधे के आकार के अनुसार खोदकर प्रति पौधा 100 ग्राम ट्राइकोडर्मा को 8-10 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर 8-10 दिन बाद तैयार ट्राइकोडर्मा युक्त गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाकर गड्ढों की भराई करनी चाहिए। खड़ी फसल में फफूंद जनित रोगों के नियंत्रण हेतु 2.5 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से 400-500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिड़काव करें जिसे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है। - चना में उकठा रोग के नियंत्रण हेतु ट्राइकोडर्मा विरिडी 1 प्रतिशत डब्लू०पी० 5 ग्राम प्रति किग्रा0 बीज की दर से बीजशोधन तथा जड़ सड़न के नियंत्रण हेतु 5 किग्रा0 लगभग 100 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से भूमिशोधन करना चाहिए। अरहर में जड़ सड़न एवं उकठा के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 1 प्रतिशत डब्लू0पी0 4 ग्राम प्रति किग्रा0 बीज की दर से बीजशोधन तथा 5 किग्रा0 लगभग 100 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से भूमिशोधन करना चाहिए। मूंग तथा उर्द में जड़ विगलन के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 1 प्रतिशत डब्लू0पी0 4 ग्राम प्रति किग्रा0 बीज की दर से बीजशोधन करना चाहिए। टमाटर तथा बैंगन जैसी सब्जियों में उकठा से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 1 प्रतिशत डब्लू0पी0 20 ग्राम प्रति किग्रा0 बीज की. दर से बीजशोधन करना चाहिए। मक्का में जड़ सड़न के लिए ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 2 प्रतिशत डब्लू०पी० 20 ग्राम प्रति किग्रा0 बीज की दर से बीजशोधन करना चाहिए। ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से पहले एवं बाद में रासायनिक फफूंदनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।