प्याज की फसल का झुलसा रोग, स्टेमफीलियम वैसीकेरियम नामक कवक से होता है। इस रोग में प्याज की पत्तियों तथा फूल की डंडियों पर पीलापन लिए हुए नारंगी धब्बे बनते हैं जो बाद में आकार में बढ़ जाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप पत्तियां सूख जाती है पत्तियों के सूख जाने से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है और पौधा भोजन नहीं बना पाता है। इससे प्याज के कंदों तथा बीज के लिए उगाई जाने वाली फसल पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। बीज की फसल में इसका प्रकोप होने से फूलों की डंडियां बहुत कमजोर हो जाती हैं तथा मुड़ करके गिर जाती है। यह रोग मुख्यतः रबी के मौसम में फैलता है क्योंकि उस समय वातावरण इसके अनुकूल होता है। जब तापमान 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तथा आद्रता 80 से 90% होती है तो इस रोग का फैलाव बहुत शीघ्रता से होता है। यही कारण है कि फरवरी मार्च के महीने में उत्तरी भारत में जब वर्षा हो जाती है तो रोग का प्रकोप बढ़ जाता है। उत्तरी भारत में रबी मौसम में उगाई जाने वाली प्याज में इस तरह का वातावरण मिलने के कारण इसका प्रकोप बहुत अधिक होता है। ठंड के दौरान यदि वर्षा हो जाती है तो वातावरण इसके अनुकूल हो जाता है और यह रोग शीघ्रता से फैलता है। कभी-कभी यह देखा गया है कि उत्तरी भारत में इससे प्याज की फसल को 80 से 90% का नुकसान हो जाता है।
रोकथाम
इस रोग की रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए अर्थात एक ही खेत में बार-बार प्याज की फसल ना उगाकर बदल-बदल दूसरी फसल भी उगाना चाहिए।
प्याज के बीज का उपचार करना तथा नर्सरी को रोपाई से पहले कार्बेंडाजिम में के घोल में डुबोकर उपचारित करने से इस रोग के प्रकोप को कम किया जा सकता है। कार्बेंडाजिम नामक कवकनाशी का 0.2 प्रतिशत के घोल का 10 से 15 दिनों के अंतर पर छिड़काव करने से भी इस रोग का नियंत्रण होता है। छिड़काव करने में यह ध्यान देना चाहिए कि कोई चिपकने वाला पदार्थ भी घोल में मिला लेना चाहिए क्योंकि प्याज की पत्तियां बहुत ही चिकनी होती हैं जिससे उस पर रसायन नहीं रुकता है यदि कोई चिपकने वाला पदार्थ नहीं मिलता है तो आप शैंपू भी मिला सकते हैं। यह रोग एक खेत से दूसरे खेत में फैलता है अतः किसी क्षेत्र विशेष में एक साथ कई किसान प्याज की खेती कर रहे हैं तो सबको एक ही समय में कार्बेंडाजिम रसायन का छिड़काव करना चाहिए जिससे और अधिक प्रभावी नियंत्रण किया जा सके।