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सफेदा अथवा यूकेलिप्टस का उत्पादन Eucalyptus Production


Eucalyptus, timber wood, forest plant, agro forestry,social forestry सफेदा अथवा यूकेलिप्टस आस्ट्रेलिया का प्राकृतिक वृक्ष  है । विश्व में इसकी कुल लगभग 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। सफेदा को ऑस्ट्रेलिया के बाहर विभिन्न प्रकार की जलवायु में सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है जिसके कारण यह पौधा  विश्व के लगभग सभी देशों में उगाया जा रहा है। यह एक तेज बढ़ने वाला सीधे तने वाला वृक्ष है जिसका रोपण अन्य वृक्षों की तुलना में विश्व में सबसे ज्यादा होता है । भारत में यूकेलिप्टस का सबसे पहले रोपण कर्नाटका राज्य में नीलगिरी क्षेत्र में किया गया था । यह एक बहुत ही उपयोगी इमारती लकड़ी है जिसका उपयोग फरनीचर पेंटिंग प्लाईवुड ईंधन पार्टिकल बोर्ड हार्ड बोर्ड दरवाजे खिड़कियां आदि बनाने में किया जाता है। इस पोस्ट में पढ़ें(toc)

यूकेलिप्टस-जलवायु Climate for Eucalyptus 

सफेदा को विभिन्न प्रकार की जलवायु में सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है।  सफेदा 0 से 47 डिग्री सेल्सियस तापमान में सफलतापूर्वक उग सकता है इसके लिए 20 से 125 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले स्थान उपयुक्त होते हैं ।

यूकेलिप्टस-मृदा Soil for Eucalyptus

सफेदा के लिए क्षारीय मृदा उपयुक्त नहीं होती है मृदा में जलभराव भी  नहीं होना चाहिए। मृदा का पी एच मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए। सूखे स्थान  में सफेदा उगाने के लिए सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। सफेदा पहाड़ी क्षेत्रों में जहां की ऊंचाई 4000 से 5000 फीट तक है वहाॅ अच्छा प्रदर्शन नहीं करता है । इसके लिए गहरी परत व नमी वाली मृदा अच्छी मानी जाती है।

यूकेलिप्टस-प्रवर्धन तथा पौध तैयार करना Nursery Raising and Propagation of Eucalyptus

बीज की खरीदारी विश्वासनीय अथवा प्रमाणित संस्थान से ही करना चाहिए। बीज की बुआई के लिए 15 सेंटी मीटर ऊंची क्यारियां बना लिया जाता है इन क्यारियों में 10 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज को हाथ से छिड़ककर सीधी कतार में बोया जाता है। बीज की दर 20 ग्राम प्रति वर्ग मीटर रखी जाती है। बीज की बुआई के बाद बलुई मिट्टी की हल्की परत से बीज को ढक दिया जाता है तथा क्यारी के ऊपर पुआल अथवा घास.फूस ढककर हजारे से छिड़काव विधि द्वारा सिंचाई कर दी जाती है और आवश्यकतानुसार पानी छिड़क कर नमी बनाए रखा जाता है। जब बीज अंकुरित होने  के बाद उसमें चार पत्ते निकल आते हैं तो उसको क्यारी से उठाकर पॉलिथीन की थैलियों में लगाया जाता है। थैलियों  में मिट्टी रेत तथा गोबर की खाद भरी हुई होना चाहिए । थैलियों में पौध रोपण के बाद तुरंत हल्की सिंचाई कर देना चाहिए । लगभग 4 महीने तक पौधे पॉलिथीन की थैलियों में बढ़ते रहते हैं । 4 महीने के बाद  खेत में रोपण योग्य हो जाती हैं। इसके बाद इनको रोपण के लिए खेत में ले जाकर इनका रोपण किया जा सकता है । आजकल कलम द्वारा तैयार किए गए पौधे उपलब्ध है इन पौधों को खरीदने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पौधशाला विश्वासनीय है ।जिससे कि उच्च गुणवत्ता की कलमी पौधे प्राप्त किए जा सके । कलमी पौधों की बढ़वार अच्छी होती है।

यूकेलिप्टस-पौधरोपण Planting of Eucalyptus

यूकेलिप्टस की पौधों को वर्षा ऋतु प्रारंभ होने के ठीक पहले  जुलाई.अगस्त में लगाया जाता है किंतु यदि सिंचाई की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध हो तो इसका रोपण फरवरी.मार्च में भी किया जा सकता है । रोपण के लिए 30 सेंटीमीटर आकार के घनाकार गड्ढ़े खोद लिए जाते हैं ।गड्ढों में मिट्टी व गोबर की खाद भर दी जाती है । पौध से पौध की दूरी 4 मीटर तथा लाइन से लाइन की दूरी 5 मीटर रखना चाहिए। गड्ढों की भराई करने के बाद पौधों को मिट्टी की पिनडी के साथ सावधानी पूर्वक बीच में लगा  दिया जाता है । पौधे लगाने के बाद सिंचाई अवश्य करना चाहिए।  सघन वृक्षारोपण में कतार से कतार की दूरी 4 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 1.25 मीटर रखा जाता है । इस प्रकार सघन वृक्षारोपण करने पर एक हेक्टेयर में लगभग 2000 सफेदा के पौधे उगाए जा सकते हैं।  सफेदा को खेत की मेड़ अथवा खेत की सीमा पर भी लगाया जाता है। मेड़ों पर लगाने  समय पौधे से पौधे की दूरी 2 मीटर रखा जाता है और इस प्रकार दूरी रखने पर एक एकड भूमि पर यूकेलिप्टस के करीब 100 से 200 पेड़ों  लगाए जा सकते हैं।

यूकेलिप्टस-सिंचाई और जलनिकास Irrigation and Drainage for Eucalyptus

 सफेदा की सफल बढवार हेतु सिंचाई की उचित व्यवस्था होना अति आवश्यक है यदि भूमि में पर्याप्त नमी नहीं रहती तो  बढ़वार अच्छी नहीं होती है। सफेदा के लिए सुखा और जल भराव दोनों नुकसानदायक है इस कारण पानी के निकास की समुचित व्यवस्था भी होना चाहिए ।  ग्रीष्मकालीन महीने अप्रैल मई व जून में लगभग 15 दिन के अंतर पर सिंचाई करते रहना चाहिए। जब पौधे 3 वर्ष के ऊपर के हो जाते हैं तो सिंचाई  कम की जा सकती है।

यूकेलिप्टस-रोग तथा कीट नियंत्रण Diseases and Pests of Eucalyptus

यूकेलिप्टस-झुलसा Eucalyptus Blight

इस रोग का संक्रमण होने पर पेड़ से पत्ता झुलस  कर गिर जाता है और शाखाएं सूखने लगती है। रोग की रोकथाम के लिए इंडोफिल एम 45 का 0.5 प्रतिशत का घोल अथवा बैविसटीन का 0.1 प्रतिशत का घोल छिड़कना चाहिए।

यूकेलिप्टस-पिंक रोग Pink Disease of Eucalyptus

इस रोग का संक्रमण छोटे पौधों पर अधिक होता है। इसका  संक्रमण होने पर पौधे की टहनियों  पर छल्ले उभर आते हैं और धीरे.धीरे शाखाएं मरने लगती । इस रोग का नियंत्रण करने के लिए रोग रोधी प्रजातियों का चुनाव करना चाहिए तथा ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ होने से पहले बोर्डो मिश्रण (Bordeaux Mixture) का दो तीन बार छिड़काव कर देना चाहिए ।

यूकेलिप्टस-दीमक Termites of Eucalyptus

इस कीट से पौधों को नुकसान होता है। दीमक लगने से पौधे की जड़ें व शाखाएं प्रभावित हो सकती हैं जिसके कारण पौधा सुख भी सकता है ।दीमक का प्रकोप सूखे क्षेत्रों में अधिक होता है। इसके नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफॉस (chlorpyriphos) नामक दवा को पानी में घोलकर पेड़ के पास जड़ में डाल देना चाहिए ।

यूकेलिप्टस-पेड़ों की कटाई Eucalyptus Harvesting

यूकेलिप्टस के पेड़ों की कटाई की आयु आवश्यकता के ऊपर निर्भर करती है ।पेड़ों का कटान नवंबर से फरवरी माह के बीच अथवा बरसात में करना चाहिए । यदि लकड़ी का उपयोग लुगदी बनाने ईंधन के लिए भवन निर्माण के लिए  किया जाना है तो  7 से 8 वर्ष की आयु प्राप्त होने पर पेड़ों को काट लेना चाहिए किंतु यदि लकड़ी का उपयोग इमारती लकड़ी के रूप में किया जाना है फर्नीचर बनाने के में किया जाना है तो पेड़ों की कटाई 12 से 15 वर्ष की आयु प्राप्त होने पर करना चाहिए। 
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