दलहनी फसलों में उत्तर प्रदेश में चने के बाद अरहर का स्थान है यह फसल अकेली तथा दूसरी फसलों के साथ भी बोई जाती है। ज्वार, बाजरा, उर्द और कपास, अरहर के साथ बोई जाने वाली प्रमुख फसलें है। हमारे प्रदेश की उत्पादकता राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। सघन पद्धतियों को अपनाकर इसे और बढ़ाया जा सकता है।
अरहर के लिए खेत का चुनाव Soil for Pigeon pea Cultivation
अरहर की फसल के लिए बलुई दोमट व दोमट भूमि अच्छी होती है। उचित जल निकास तथा हल्के ढालू खेत अरहर के लिए सर्वोत्तम होते हैं। लवणीय तथा क्षारीय भूमि में इसकी खेती सफलतापूर्वक नहीं की जा सकती है।
अरहर के लिए खेत की तैयारी Field Preparation for Pigeon pea
खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 जुताई देशी हल से करनी चाहिए। जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को तैयार कर लेना चाहिए।
अरहर के लिए भूमि शोधन Soil Treatment for Pigeon Pea Growing
फसल को भूमि जनित रोगों से बचाने के लिए ट्राइकोडर्मा हरजियेनम डब्लू.पी. (Trichoderma harzianum wp) की 2.5 किग्रा. मात्रा प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा. सड़ी हुई गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त आखिरी जुताई के समय खेतों में मिला दें दीमक, सफेद गिडार, सूत्रकृमि, जड़ की सूण्डी, कटवर्म आदि कीटों से बचाव हेतु ब्यूवेरिया बैसियाना 1ः डब्लू.पी. बायोपेस्टीसाइड की 2.5 किग्रा. मात्रा प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा. गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देना चाहिए।
उन्नतशील प्रजातियां Cultivars of Pigeon pea
टा-21, पू.पी.ए.एस.-120, आई.सी.पी.एल.-151, नरेन्द्र-1, अमर, बहार, आज़ाद, मालवीय, मालवीय विकास, नरेन्द्र अरहर-2, पूसा बहार-9,पूसा अरहर-16, ग्वालियर-3
अरहर का बुवाई का समय Sowing Time of Pigeon pea
देर से पकने वाली प्रजातियां जो लगभग 270 दिन में तैयार होती हैं, की बुवाई जुलाई माह में करनी चाहिए। शीघ्र पकने वाली प्रजातियों को सिंचित क्षेत्रों में जून के मध्य तक बो देना चाहिए, जिससे यह फसल नवम्बर के अन्त तक पक कर तैयार हो जाय और दिसम्बर के प्रथम पखवारे में गेहूँ की बुवाई सम्भव हो सके। अधिक उपज लेने के लिए टा-21 प्रजाति को अप्रैल प्रथम पखवारे में (प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में तराई को छोड़कर) ग्रीष्म कालीन मूँग के साथ सह-फसल के रूप में बोने के लिए जायद में बल दिया जा चुका है। इसके लाभ हैं:
(अ) फसल नवम्बर के मध्य तक तैयार हो जाती है एवं गेहूँ की बुवाई में देर नहीं होती है।
(ब) इसकी उपज जून में (खरीफ) बोई गई फसल से अधिक होती है।
(स) मेड़ों पर बोने से अच्छी उपज मिलती है।
अरहर के बीज का उपचार Seed Treatment of Pigeon pea
सर्वप्रथम एक किग्रा. बीज को 2 ग्राम थीरम तथा एक ग्राम कार्बोन्डाजिम के मिश्रण अथवा 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) + 1 ग्राम कार्बाक्सिन कार्बिन्डाजिम (carboxin carbendazim) से उपचारित करें । बोने से पहले हर बीज को अरहर के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। एक पैकेट 10 किग्रा. बीज के लिए पर्याप्त होता है। एक पैकेट राइजोबियम कल्चर को साफ पानी में घोल बनाकर 10 किग्रा. बीज के ऊपर छिड़ककर हल्के हाथ से मिलायें जिससे बीज के ऊपर एक हल्की पर्त बन जाये। इस बीज की बुवाई तुरन्त करें। तेज धूप से कल्चर के जीवाणु के मरने की आशंका रहती है। ऐसे खेतों में जहाँ अरहर पहली बार काफी समय बाद बोई जा रही हो, कल्चर का प्रयोग अवश्य करें।
अरहर के बीज की मात्रा तथा बुवाई विधि Seed Rate and Sowing Method of Pigeon pea
बुवाई हल के पीछे कूंड़ों में करनी चाहिए। प्रजाति तथा मौसम के अनुसार बीज की मात्रा तथा बुवाई की दूरी निम्न प्रकार रखनी चाहिए। बुवाई के 20-25 दिन बाद पौधे की दूरी, सघन पौधे को निकालकर निश्चित कर देनी चाहिए। अरहर की बुवाई रिज या रेज्ड बेड पर की जाय तो उक्ठा रोग एवं जल भराव की समस्या को नियंत्रित कर सकते हैं। जोड़ी पंक्ति (60: 120 सेमी.) में बुवाई करने पर अन्तःफसल द्वारा अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में बाढ़ या लगातार वर्षा के कारण बुवाई में विलम्ब होने की दशा में सितम्बर के प्रथम पखवारे में बहार एवं पी.डी.ए.-द्वितीय की शुद्ध फसल के रूप में बुवाई की जा सकती है, परन्तु कतार से कतार की दूरी 30 सेमी. एवं बीज की मात्रा 20-25 किग्रा./हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए।
अरहर के लिए उर्वरकों का प्रयोग Nutrients Management for Pigeon pea Cultivation
अरहर की अच्छी उपज लेने के लिए 10 से 15 किग्रा. नत्रजन, 40-45 किग्रा. फास्फोरस तथा 20 किग्रा. सल्फर की प्रति हे. आवश्यकता होती है। अरहर की अधिक से अधिक उपज के लिए फास्फोरस युक्त उर्वरकों जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, डाई अमोनियम फास्फेट का प्रयोग करना चाहिए। सिंगिल सुपर फास्फेट प्रति हे. 250 किग्रा. या 100 किग्रा. डाई अमोनियम फास्फेट तथा 20 किग्रा. सल्फर पंक्तियों में बुवाई के समय चोंगा या नाई की सहायता से देना चाहिए, जिससे उर्वरक का बीज के साथ सम्पर्क न हो। यह उपयुक्त होगा कि फास्फोरस की सम्पूर्ण मात्रा सिंगिल सुपर फास्फेट से दी जाय जिससे 12 प्रतिशत सल्फर की पूर्ति भी हो सके। यूरिया खाद की थोड़ी मात्रा (15-20 किग्रा. प्रति हे.) केवल उन खेतों मे जो नत्रजन तत्व में कमजोर हो, देना चाहिए। उर्द जैसी सह-फसलों को अरहर के लिए प्रयुक्त खाद की आधी मात्रा दें ज्वार तथा बाजरा की सह फसलों के रूप में बुवाई के समय उनकी पंक्तियों में 20 किग्रा. नत्रजन प्रति हे. की दर से दें तथा एक महीना बाद 10 किग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर की टॉप ड्रेसिंग करें। सितम्बर में बुवाई हेतु 30 से 40 किग्रा. प्रति हे. नत्रजन के प्रयोग से अच्छी उपज प्राप्त होती है।
अरहर में सिंचाई Irrigation in Pigeon pea
अरहर पी.ए.-291, अरहर टा-21 तथा यू.पी.ए.एस.-120 तथा आई.सी.पी.एल.-151 को पलेवा करके तथा अन्य प्रजातियों को वर्षाकाल में पर्याप्त नमी होने पर बोना चाहिए। खेत में कम नमी की अवस्था में एक सिंचाई फलियां बनने के समय अक्टूबर माह में अवश्य की जाय। देर से पकने वाली प्रजातियों में पाले से बचाव हेतु दिसम्बर या जनवरी माह में सिंचाई करना लाभप्रद रहता है।
अरहर में निकाई-गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण Hoeing and Weeds Control in Pigeon pea
अरहर में खरपतवार के नियंत्रण के लिए निकाई और गुड़ाई करना लाभदायक रहता है गुड़ाई करते वक्त अरहर की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाई जा सकती।खरपतवारनाशी के प्रयोग से भी खरपतवार का नियंत्रण किया जा सकता है। फ्लुक्लोरालिन 45% ईसी (Fluchloralin 45% EC) की 1500 से 2000 मिलीलीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के ठीक पहले छिड़काव कर देना चाहिए। इसके अतिरिक्त पेंडामेथिलीन 30% ईसी (Pendamethylene 30% EC) की 2500 से 3000 मिलीलीटर मात्रा बीज बोने के ठीक बाद छिड़काव किया जाता है। ऑक्सीफ्लोरफेन 23.5 ई.सी (Oxyfluorfen 23.5 EC) की 400 से 500 मिलीलीटर मात्रा का छिड़काव बुवाई के तुरंत बाद कर देने से अरहर में खरपतवार नियंत्रण हो जाता है ।
संदर्भ-कृषि ज्ञान मंजूषा कृषि विभाग उत्तर प्रदेश