कृषि क्षेत्र की विकास दर में वृद्धि के लिए उपलब्ध संसाधनों का न केवल अनुकूलतम उपयोग बल्कि कृषि उत्पादन लागत में कमी के उपायों पर भी बल दिया जाना आवश्यक हो गया है। उत्पादन लागत को कम करने अथवा बगैर अतिरिक्त लागत युक्त तकनीकों का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में कुछ प्रमुख तकनीकों/विधाओं का विवरण निम्नवत् है:
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फसल/प्रजातियों का चुनाव Selection of Suitable Crop and Variety
उत्तर प्रदेश, 9 कृषि जलवायु क्षेत्रों में विभक्त है। क्षेत्रीय विविधता के अनुरूप फसलों एवं तदनुसार उपर्युक्त प्रजातियों के उपयोग से बगैर किसी अतिरिक्त लागत के उत्पादन स्तर में वृद्धि लायी जा सकती है। सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में धान, गेहूँ जैसी फसलों के स्थान पर कम सिंचाई मांग वाली फसलें जैसे ज्वार, बाजरा, अरहर, तिल, अलसी, मसूर, सरसों जैसे फसलें ली जानी चाहिए। विलग्ब से बोये जाने की दशा में गेहूँ की उचित प्रजातियों यथा उन्नति हलना, मालवीय-234।
समय से बुवाई/रोपाई In Time Sowing and Transplanting
प्रदेश में सर्वाधिक क्षेत्रफल धान-गेहूँ फसल चक्र के अन्तर्गत हैं परन्तु ये दोनों ही फसलें नियत समय से विलम्ब से बोये जाने के कारण अपनी क्षमता के अनुसार उत्पादन देने में समर्थ नहीं होती । प्रचलित प्रजातियों को दृष्टिगत रखते हुए यदि धान की रोपाई जुलाई के प्रथम पक्ष में एवं गेहूँ की बुवाई नवम्बरर के प्रथम पक्ष में पूर्ण कर ली जाय तो उत्पादन बगैर किसी अतिरिक्त लागत के बढ़ जायेगा। यहां यह ध्यान रखना आवश्यक होगा कि विलम्ब की संभावना को देखते हुए तद्नुसार उपर्युक्त प्रजातियों का ही अपनाया जाय।
बीज शोधन Seed Treatment
फसलों के वृद्धि एवं विकास काल के दौरान रोग एवं कीटों के प्रभाव से सर्वाधिक क्षति होती है। प्रायः रोग/कीट का प्रकोप समय से (प्रारम्भिक अवस्था में) ज्ञात न होने से अत्यधिक क्षति का सामना कृषकों को करना पड़ता है। धान, गेहूँ, गन्ना, आलू, दलहनी एवं तिलहनी फसलों को बीज शोधन के माध्यम से सम्भावित रोग,कीटों से मुक्त रखा जा सकता है। वर्तमान में जैव बीज शोधकों यथा टंाइकोडर्मा (Trichoderma) तथा बवेरिया बैसियाना (Beauveria bassiana) के प्रयोग से कम लागत में फसल बीज के जमाव में वृद्धि के साथ-साथ उसे कीटों एवं रोगों से संरक्षित भी रखा जा सकता है। बीज शोधन रसायनों से भी किया जा सकता है। बीज शोधन की लागत खड़ी फसल में रोग/कीटों के उपचार की तुलना में बहुत कम होती है साथ ही फसल को क्षति से होने वाली हानि से भी बचाया जा सकता है। जैव उर्वरकों यथा एजेटोबैक्टर (Azotobacter), राइजोबियम (Rhizobium), पी.एस.बी.(PSB) आदि से उपचार कर फसलों के पोषक तत्वों की मांग को पूरा किया जा सकता है। शोध परिणामों में यह पाया गया है कि सरसों के बीज को एज़ोस्परिलम से उपचारित करने पर उत्पादन में वृद्धि होती है जबकि इस पर लागत अत्यन्त कम आती है।
सह फसली खेती Inter Cropping
कृषि योग्य क्षेत्र पर जनसंख्या के निरन्तर बढ़ते दबाव से छोटी हो रही जोतों से आर्थिक रूप से लाभप्रद उत्पादन करना कठिन हो रहा है। ऐसी दशा में उपर्युक्त सहफसली खेती से न केवल प्रति इकाई उत्पादन बल्कि प्राकृतिक कारणों (रोग/कीट/प्रतिकूल मौसम प्रकोप) से सम्भावित हानि के स्तर को भी कम किया जा सकता है। कुछ प्रमुख सहफसली प्रणाली/फसल चक्र निम्नवत् है:
- गेहूँ + सरसों (9ः1 के पंक्ति अनुपात में बुवाई)
- आलू + राई (3ः1 के पंक्ति अनुपात में बुवाई)
- गन्ना + राई (1ः2 पंक्ति अनुपात में बुवाई)
- गन्ना + मसूर (1ः3 पंक्ति अनुपात में बुवाई)
उर्द-सरसों फसल चक्र में सरसों का उत्पादन एवं तेल का प्रतिशत बढ़ जाता है साथ ही भूमि की उर्वरता भी बनी रहती है। सहफसली पद्धति में दोनों फसलों की जाति एवं प्रकृति भिन्न रखी जाती है इससे पोषक तत्वों की आपूर्ति, सिंचाई जल की आवश्यकता व अन्य देखरेश में संतुलन बना रहता है।
उपयुक्त कृषि यंत्रों का उपयोग Use of Proper Agriculture Machinery
कृषकों के स्तर पर कृषि कार्य में श्रम की लागत पर प्रायः ध्यान नहीं दिया जाता है। पारम्परिक पशु /मानव श्रम से किये जाने वाले कार्यों का कम लागत पर अपेक्षाकृत काफी कम समय में उच्च गुणवत्ता के साथ सम्पादित किया जा सकता है।
- बुवाई हेतु बीज सह उर्वरक ड्रिल (Seedcum Fertilizer Drill) का प्रयोग बीज एवं उर्वरक दोनों की उपयोग दक्षता को बढ़ाता है।
- जीरो-टिलेज सीड ड्रिल (Zero Tillage Seed Drill) के माध्यम से विलम्ब की दशा में धान के खेत में बगैर खेत की अतिरिक्त तैयारी किये बुवाई की जा सकती है। इससे न केवल खेत की तैयारी पर होने वाले व्यय की बचत होती है बल्कि समय से बुवाई केकारण उत्पादन पर भी कुप्रभाव नहीं पड़ता।
- रोटावेटर (Rotavator) की सहायता से खेत की जुताई, बुवाई के लिए तैयारी, समतलीकरण आदि कार्यों को सुगमता से कम समय में पूर्ण किया जा सकता है।छिड़काव सिंचाई/डिंप सिंचाई प्रणाली (sprinkler/drip irrigation system) के उपयोग से सीमित जल वाले, असमतल क्षेत्रों, बागवानी, नगदी फसलों (cash crops) के उत्पादन में कम लागत पर अधिक क्षेत्र का सिंचित किया जा सकत है। आम के बगीचों में डिंप सिंचाई विधि से लगभग 69 प्रतिशत तक सिंचाई जल की बचत एवं इसके साथ उर्वरक प्रयोग से पैदावार में बगैर अतिरिक्त लागत व श्रम व्यय किये वृद्धि संभव है।