खराब प्रजाति का रोपण
पुराने समय में
लोगों का उद्देश्य केवल फल रोपना होता था। प्रजाति व उसके गुणों पर ध्यान नहीं
दिया जाता था। ऐसे उद्यान आज अलाभकारी हो गये हैं।
अनुपयुक्त रोपण अन्तर
पुराने समय से लगाये गये बागानों में पौधे से पौधे व लाइन से लाइन की दूरी अर्थात अन्त रण का कोई महत्व नहीं था। पेड़ों के पास-पास होने के कारण वे प्रकाश की खोज में ऊपर बढ़ने लगते हैं जिससे शाखायें कम निकलती हैं फलस्वरूप फसल अच्छी नहीं होती है।
स्वअनिषेच्य किस्मों का रोपण
यह वे किसमें
होती है जिनमें अच्छे पुष्पन के बावजूद भी फलत नहीं आती है। क्योंकि यह किस्में
स्वअनिषेचय होती है ऐसी स्थिति पुराने बगीचों में देखने को मिलती है जहाँ पर ज्ञात
न होने के कारण ऐसी किस्मों का रोपण कर दिया गया है।
उचित जल निकास का अभाव
उचित जल निकास न हो पाने की स्थिति में
जल भराव हो जाता है जिसके कारण पेड़ की जड़ों को मिलने वाली आक्सीजन की आपूर्ति
बाधित हो जाती है फलस्वरूप पौधे मुरझा जाते है या फिर अस्वस्थता में जीवित रह कर
फलत नहीं देते हैं।
उचित पोषण की कमी
किसी भी वृक्ष की अच्छी वानस्पतिक वृद्धि
के लिए व अच्छी फलत देने के लिए उचित पोषण बहुत जरूरी होता है लेकिन भारतीय दशाओं
में केवल कुछ व्यवसायी फलो़द्यानों को छोड़ दिए जाये तो उनके अतिरिक्त फलोद्यानों
को खाद व उर्वरक या तो बिल्कुल नहीं दिये जाते हैं या फिर नगण्य मात्रा में दिये
जाते हैं। अन्ततः फलोद्यान अलाभकारी हो जाते हैं।
खर पतवार व जंगली झाड़ियों की वृद्धि
अधिकतर पुराने उद्यानों में नियमित
कर्षण क्रियाएं नहीं होती है जिनके कारण बड़ी संख्याओं में झाड़ियाँ व खरपतवार उगकर
फल वृक्षों में जल व पोषण के लिए प्रतियोगिता कर उन्हें हानि पहुँचाते हैं। यह
खरपतवार बहुत से रोगों व कीटों के लिए वैकल्पिक पौधों का कार्य करते हैं।
आपूर्ति स्थान
आँधी में गिरे या सूख गये फल वृक्षों
के स्थान पर नये पौधे न लगाने के कारण क्षेत्र के आधार पर जितने वृक्ष होने चाहिए
उनमें कमी हो गयी हैं, जिसके कारण
उद्यान अलाभकारी हो गये हैं।
उचित काट छाँट की कमी
परम्परागत पुराने उद्यानों में काट
छाँट न होने के कारण वृक्ष मनमाने ढंग से वृद्धि करते रहते हैं जिसके कारण अनेक
समस्यायें जन्म ले लेती हैं जो उद्यान में फलत को प्रभावित करती हैं।
फलोद्यान का कायाकल्प
उपरोक्त सभी कमियों को दूर करके तथा पुराने
फल वृक्षों का जीर्णोद्धार करके फल उद्यान का कायाकल्प किया जा सकता है जो कि
निम्न प्रकार हैं-
रिक्त स्थानों की पूर्ति करके नये
वृक्षों का रोपण करना।
1- घने रोपण वाले पौधों का विरलीकरण करके उनको
एक मानक अन्तर पर स्थापित करना।
2- जल निकास की उचित व्यवस्था करना ताकि
वृक्षों को अच्छा वायु संचार प्राप्त हो सके।
3- समय-समय पर गुड़ाई-जुताई तथा खरपतवारों
को बगीचों से निकालते रहना चाहिए।
4- समय-समय पर उचित काट छाँट करते रहना
चाहिए।
5- फल वृक्षों को उचित मात्रा में सड़ी हुई
गोबर की खाद व उर्वरक देते रहना चाहिए।
6- कीटों तथा रोगों से बचाव के लिए
कीटनाशी व रोगनाशी दवाओं का समय-समय पर उपयोग करते रहना चाहिए।
7- स्वअनिषेच्य किस्मों के पौधों की गहरी
कटाई छँटाई करके नयी शाखाओं पर चोटी कलम बन्धन या चश्मा द्वारा उच्च कोटि की
किस्मों का प्रत्यारोपण करने पर कुछ ही वर्षों में अच्छी गुणवत्ता की फलत प्राप्त
होने लगती है
इस प्रकार से पुराने बगीचों का
जीर्णोद्धार करके उसे नया जीवन दिया जा सकता है जो कि उत्पादन व आर्थिक दृष्टि दोनों
के लिए महत्वपूर्ण हैं।
इसके
लेखक हैं- देवराज सिंह, प्रतीक कुमार, डा0 वी0 पी0 पाण्डेय एवं गौरव सिंह,
सब्जी विज्ञान विभाग, नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक
विश्वविद्यालय, कुमारगंज,
फैजाबाद, (उ0प्र0), भारत।