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ब्राह्मी (Bacopa monnieri L.)

ब्राह्मी (Bacopa monnieri L.) एक अल्पकालिक वार्षिक लता है जो सम्पूर्ण देश के जलाशयों के किनारे स्वतः उगती है। भारत के उष्ण तथा उपोष्ण क्षेत्रों में नम तथा जलस्रोतों के आस-पास प्राकृतिक रूप से ब्राह्मी का उत्पादन होता है। हरिद्वार से लेकर लगभग 200 फीट की ऊँचाई तक इसके पौधे देखे जा सकते हैं। इसे ब्राह्मी, सोमवल्ली, मण्डूकपर्णी, दिव्या, सरस्वती, बंका तथा महौषधि आदि नामों से भी जाना जाता है। 

यह एक भूप्रसारीय अत्यन्त कोमल लता होती है। जिसके पत्र मण्डूक के समान होते हैं। इसकी लता नम और तर भूमि में फैलती है जिसकी गांठों से जड़ों का उद्भव होता है। प्रत्येक गांठ से एक नये पौधे का जन्म होता रहता है। इसमें एक साथ दो तीन जर्द दलदार गोल आकार वाले पत्ते निकलते हैं। जिन पर छोटे-छोटे चिन्ह पाये जाते हैं। इसकी लताओं में मुख्यतः सितम्बर-अक्टूबर में पुष्पन होता है। जबकि यदा-कदा वर्ष भर फूल आते रहते हैं। पुष्पन के साथ ही फल भी बनते रहते हैंै। इसमें हाइड्रोकोटिलीन नामक क्षाराभ, ताजी पत्तियों में एशियाटिकोसाइड नामक ग्लाइकोसाइड के अतिरिक्त वैलेरिन, राल तिक्त पदार्थ, पेक्टिक अम्ल, स्टेराल, वसा अम्ल, टैनिन, उड़नशील तेल तथा एसकार्बिक एसिड पाये जाते है।

ब्राह्मी (Bacopa monnieri L.) औषधीय उपयोग

ब्राह्मी को मुख्यतः तंत्रिका तंत्र, मनोरोग, पागलपन, मिर्गी जैसे भयानक रोगों के उपचार हेतु प्रयोग किया जाता है। इनके लिए पत्तियों के ताजे रस को घी में पका कर प्रयोग किया जाता है। महर्षि चरक के अनुसार ब्राह्मी मानसिक रोगों के उपचार की अचूक वनस्पति है जो अपस्मार में विशेष लाभ करती है। सुश्रुत संहिता के अनुसार ब्राह्मी मस्तिष्क विकृति, नाड़ी दौर्बल्य, अपस्मार, उन्माद एवं स्मृतिनाश में विशेष लाभकारी है। भावप्रकाश के अनुसार ब्राह्मी मेधावर्धक है। हिस्टीरिया जैसे रोगों में तत्काल लाभ प्राप्त होता है। सिरदर्द, चक्कर, भारीपन तथा चिन्ता में ब्राह्मी तेल का प्रयोग अनेक वैद्यों द्वारा किया जाता है।    वनौषधि चन्द्रोदय के वैद्य के अनुसार ब्राह्मी की क्रिया मस्तिष्क और मज्जा तन्तुओं पर होती है। मस्तिष्क को शान्ति प्रदान करने के साथ-साथ ब्राह्मी पौष्टिक टानिक के रूप में भी कार्य करती है। इनके अतिरिक्त इसका उपयोग रक्तचाप, केशों के झड़ने से रोकने के लिए तथा मधुर आवाज उत्पन्न करने के लिए भी किया जाता है।

ब्राह्मी (Bacopa monnieri L.) भूमि एवं जलवायु

आंशिक छाया एवं पर्याप्त नमी की उपलब्धता रहने पर ब्राह्मी की खेती विभिन्न प्रकार की भूमियों में की जा सकती है। सामान्य पी0 एच0 वाली बलुई दोमट तथा चिकनी मिट्टी में भी इसके पौधों में अच्छी वृद्धि होती है। समुद्र तल से लगभग 1300 मीटर की ऊँचाई वाले स्थानों पर भी इसकी खेती की जा सकतीहै। उत्तर भारत में 15 से 40 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम वाले क्षेत्रों में 5 से 7.5 पी0एच0 मान वाली भूमि में इसे उगाया जाता है। जल प्रवाह के निकटवर्ती क्षेत्रों को छोड़कर अन्य स्थानों में इसमें शीत ऋतु में सुषुप्तावस्था पायी जाती है।

ब्राह्मी (Bacopa monnieri L.) की प्रजातियां

उत्पादन तथा पौधों में पाये जाने वाले वकोसाइड एल्कलाइड की मात्रा के आधार पर गंगा के मैदानी इलाकों में प्राप्त प्रजातियों की तुलना में राबी नदी के क्षेत्रों में पायी जाने वाली प्रजातियां ज्यादा अच्छी होती हैं। केन्द्रीय औषधीय एवं सगन्ध पौध संस्थान, लखनऊ द्वारा सुबोधक, प्रज्ञा शक्ति तथा सी0आई0एम0-जागृति नामक तीन बहुवर्षीय प्रजातियों का विकास किया गया है। जिनसे प्रत्येक वर्ष दो कटाईयां ली जा सकती हैंैं। इन प्रजातियों में प्रज्ञाशक्ति का उत्पादन सबसे अच्छा (10-12 कु0 शुष्क हर्ब प्रति हैक्टेयर प्रति कटाई) होता है तथा इनमें वकोसाइड ए की मात्रा लगभग 1.8 प्रतिशत तक पायी जाती है। 

ब्राह्मी (Bacopa monnieri L.) - प्रवर्धन तकनीक

ताजी इक्कट्ठा की गयी लताओं की 5-10 सें.मी. लम्बी ऐसी शाखाएं जिन पर इन्टरनोड तथा जड़ें हों, ब्राह्मी के प्रवर्धन के लिए सर्वोत्तम होती हैं। इसके पौधों में वर्षा ऋतु में व्यापक वानस्पतिक वृद्धि होती है। इस समय कटिंग लेना अच्छा रहता है। इसके बीज अत्यन्त छोटे होते हैं, जो अक्टूबर-नवम्बर में प्राप्त होते हैंै। इनका अंकुरण भी बहुत कम होता है। ब्राह्मी की व्यावसायिक खेती हेतु उपर्युक्त शाखाओं की कटिंग 10 मीटर लम्बी तथा 1 मीटर चैड़ी अच्छे ढ़ग से तैयार की गयी क्यारियों में 5×10 सेंटीमी. की दूरी पर लगा करके हल्की सिंचाई कर दी जाती है। लगभग एक सप्ताह में जड़े निकल आती हैं तथा 35 से 40 दिन में पौधे रोपण योग्य तैयार हो जाते हैं। उपरोक्त आकार की लगभग 50 क्यारियां एक हैक्टेयर भूमि में ब्राह्मी के रोपण हेतु पर्याप्त होती हैं। इनसे लगभग 70 किलोग्राम अथवा लगभग 40,000 पौधे प्राप्त हो जाते हैंै। जिनसे एक हैक्टेयर क्षेत्रफल का रोपण किया जा सकता है। 

ब्राह्मी (Bacopa monnieri L.) - रोपण तकनीक

ब्राह्मी के रोपण हेतु अच्छी तरह से तैयार की गयी भुरभुरी मिट्टी होनी चाहिए। खेत पूरी तरह से समतल होना चाहिए तथा जल निकास की उत्तम व्यवस्था रहनी आवश्यक है। खेत की तैयारी करते समय 20 टन गोबर की सड़ी खाद, 30 किग्रा0 नाइट्रोजन, 50 किग्रा0 फाॅस्फोरस तथा 40 किग्रा0 पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से मिलाना लाभदायक रहता है। नर्सरी से पौधों को उठाकर मुख्य खेत में     30 ग 20 सेंटीमी. की दूरी पर किया जाना चाहिए। कटिंग्स की रोपाई सीधे खेत में भी की जा सकती है। सीधी रोपाई अथवा नर्सरी तैयार करके रोपण करने का उपयुक्त समय जून के अन्तिम सप्ताह से लेकर अगस्त के प्रथम सप्ताह तक का होता है। रोपण बाद खेत की तुरन्त सिंचाई करना आवश्यक है। 

ब्राह्मी (Bacopa monnieri L.) की निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई

रोपण के 15 से 20 दिनों बाद से ही लगभग 20 दिनों के अन्तराल पर तीन से चार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। मानसून के दिनों में खेत में खरपतवार नहीं होने चाहिए। पूरे वर्ष की फसल लेने हेतु जाड़े के महीनों में भी फसल की निराई-गुड़ाई करके खरपतवार निकाल देने चाहिए। पौधे की वृद्धि के दौरान खेत में पर्याप्त नमी का बना रहना आवश्यक है। इसके लिए भूमि की दशा, प्रकार तथा जलवायु के आधार पर आवश्यकतानुसार उचित अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। 

ब्राह्मी (Bacopa monnieri L.) - फसल परिपक्वता, कटाई एवं उपज

रोपण के 75 से 90 दिनों बाद फसल काटने योग्य हो जाती है। सितम्बर-अक्टूबर का महीना कटाई हेतु सर्वोत्तम होता है। पौधों की लम्बाई 20 से 30 सेंटीमी. हो जाने पर उनकी कटाई की जाती है। उत्तर भारत के अधिक ठण्ढ़क वाले क्षेत्रों में इसकी परती फसल नहीं प्राप्त हो पाती है। ऐसी स्थिति में पौधों को पूरा का पूरा उखाड़ दिया जाता है। कटाई उपरान्त प्रारम्भ के चार-पाँच दिनों तक हर्बेज को किसी साफ जगह पर धूप में सुखाया जाता है। इसके उपरान्त लगभग 7-10 दिनों तक इसे छाया में भली प्रकार सुखा करके इनका भण्डारण किया जा सकता है। भण्डारण अवधि 6 माह से अधिक होने पर उपलब्ध वकोसाइड की मात्रा घटने लगती है। अतः दीर्घकालिक भण्डारण से बचना चाहिए। ब्राह्मी की अच्छी फसल से लगभग 180 से 200 कुन्तल प्रति हैक्टेयर ताजे हर्बेज का उत्पादन प्राप्त हो जाता है।


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